
पैतृक संपत्ति की बिक्री को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिससे संपत्ति हस्तांतरण की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आया है, नए निर्णय ने संपत्ति के सह-वारिसों के अधिकारों को और स्पष्ट कर दिया है, जिससे पारिवारिक विवादों को कम करने में मदद मिल सकती है।
क्या था पुराना नियम?
पारंपरिक हिंदू उत्तराधिकार कानूनों के तहत, पैतृक संपत्ति को अक्सर एक संयुक्त परिवार की संपत्ति माना जाता था, जिसे सभी सह-वारिसों की पूर्ण सहमति के बिना बेचना लगभग असंभव था। इस वजह से कई बार संपत्ति विवादों में फंस जाती थी और मामला बरसों तक अदालतों में चलता रहता था।
सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले (2025 में कई संबंधित निर्णयों के माध्यम से) में इस जटिलता को दूर किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि:
- यदि पैतृक संपत्ति का औपचारिक या भौतिक विभाजन (partition) अभी तक नहीं हुआ है, तो प्रत्येक सह-मालिक (co-owner) या वारिस को अपने अधिकार के अविभाजित हिस्से (undivided share) को बेचने की आजादी है।
- एक वारिस को अपना हिस्सा बेचने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों की सहमति लेने की जरूरत नहीं है।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एक बार संपत्ति का बंटवारा हो जाने और प्रत्येक सह-मालिक को उसका विशिष्ट हिस्सा मिल जाने के बाद, वह हिस्सा उस व्यक्ति की ‘स्व-अर्जित संपत्ति’ (self-acquired property) बन जाता है। इसके बाद, मालिक उस हिस्से को अपनी इच्छानुसार किसी को भी बेच सकता है, उपहार में दे सकता है या वसीयत कर सकता है।
फैसले का प्रभाव
इस फैसले का मुख्य उद्देश्य संपत्ति के लेनदेन को सरल बनाना और सह-वारिसों को उनके व्यक्तिगत हिस्से पर उचित अधिकार देना है, यह उन मामलों में पारदर्शिता बढ़ाता है जहां संपत्ति लंबे समय से विवादित थी। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोई भी सह-मालिक बिना विभाजन के पूरी संयुक्त संपत्ति को स्थानांतरित (transfer) नहीं कर सकता, वह केवल अपने स्वयं के अविभाजित हिस्से का निपटान कर सकता है।
यह निर्णय पैतृक संपत्ति से जुड़े कानूनी मामलों में एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है, संपत्ति कानून के बारे में अधिक जानकारी Economic Times पर उपलब्ध है।
















